पर्सनल लॉ बोर्ड में कई दिक्कतें, इन कारणों से कॉमन सिविल कोड की जरुरत
अजीत राय
नई दिल्ली। देश में पिछले काफी समय से समान नागरिक संहिता को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। जहां एक ओर सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए देशवासियों से सुझाव मांगे हैं तो वहीं दूसरी ओर कई मुस्लिम नेता इस पर अपनी आपत्ति दर्ज करा रहे हैं। हालांकि सरकार का तर्क है कि समान नागरिक संहिता का मक़सद देश में मौजूद सभी नागरिकों के पर्सनल लॉ को एक समान बनाना है, जो बिना किसी धार्मिक, लैंगिक या जातीय भेदभाव के लागू किया जाएगा। जबकि मुस्लिम नेताओं का कहना है कि सरकार ने यह मुद्दा मुसलमानों को टारगेट करने के लिए उठाया है। ऐसे में जानना जरूरी हो गया है कि आखिर पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ किस तरह की समस्याएं सामने आ रही है।
दूसरा विवाह करने की आजादी
जाहिर है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अंर्तगत कई विवाह करने की छूट दी जाती है। अन्य धर्मों में एक पति एक पत्नी का कानून है। दूसरा विवाह करने पर धारा 494 में 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है। इसीलिए कई लोग दूसरा विवाह करने के लिए मुस्लिम धर्म अपना लेते हैं। भारत जैसे सेक्युलर देश में चार निकाह जायज है जबकि इस्लामिक देश पाकिस्तान में पहली बीवी की इजाजत के बिना शौहर दूसरा निकाह नहीं कर सकता हैं।
वयस्कता की उम्र निर्धारित नहीं
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में लड़कियों की वयस्कता की उम्र निर्धारित नहीं है और माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है। यही वजह है कि 9 साल की उम्र में लड़कियों का निकाह कर दिया जाता है। जबकि अन्य धर्मों में ऐसा नहीं है। यहां लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों के विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है। दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका है कि लड़का हो या लड़की, 21 वर्ष से पहले दोनों ही मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होते हैं। इसलिए विवाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए एक समान 21 वर्ष करना नितांत आवश्यक है।
तीन तलाक को लेकर विवाद
भले ही तीन तलाक पर बैन लग गया हो लेकिन अन्य प्रकार के मौखिक तलाक जैसे तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन आज भी मान्य है और इसमें भी तलाक का आधार बताने की बाध्यता नहीं है और केवल 3 महीने प्रतीक्षा करना है जबकि अन्य धर्मों में केवल न्यायालय के माध्यम से ही विवाह.विच्छेद हो सकता है। तुर्की जैसे मुस्लिम बाहुल्य देश में भी किसी तरह का मौखिक तलाक मान्य नहीं है। इसलिए तलाक का आधार भी जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए।
संपत्ति की वसीयत नहीं होती
आपको बता दें कि मुस्लिम कानून में मौखिक वसीयत एवं दान दी गई वसीयत दोनों ही मान्य है। लेकिन अन्य धर्मों की बात करें तो यहां सिर्फ पंजीकृत वसीयत और दान ही मान्य है। मुस्लिम कानून में एक तिहाई से अधिक संपत्ति का वसीयत नहीं किया जा सकता है जबकि अन्य धर्मों में शत प्रतिशत संपत्ति का वसीयत किया जा सकता है।
उत्तराधिकार में भेदभाव
मुस्लिम कानून में अपने उत्तराधिकार को चुनना काफी मुश्किल है। इस कानून में पैतृक संपत्ति में पुत्र एवं पुत्रियों के बीच काफी भेदभाव किया जाता है, जबकि अन्य धर्मों में विवाहोपरान्त अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित हैं। विवाह के बाद पुत्रियों के पैतृक संपत्ति में अधिकार सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है और विवाहोपरान्त अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित हैं।
पैतृक संपत्ति
पैतृक संपत्ति में पुत्र-पुत्री और बेटा-बहू को समान अधिकार प्राप्त नहीं है और धर्म क्षेत्र और xender आधारित विसंगतियां है। विरासत और संपत्ति का अधिकार किसी भी तरह से धार्मिक या मजहब का विषय नहीं बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है।
अलगाववादी मानसिकता
अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू होने के कारण अलगाववादी मानसिकता बढ़ रही है और हम एक अखण्ड राष्ट्र के निर्माण की दिशा में त्वरित गति से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। भारतीय दंड संहिता की तरह सभी नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र समावेशी एवं एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता लागू एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना साकार होगा।