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धरती होना बड़ा विकट है ……….
न बादल में बीज समाए न बादल पर पेड़ उगे हैं
न बादल ने भार सहा है न बादल पर लोग चले हैं
न बादल ने सहा है दोहन न उगले है सोना चांदी
न बादल को प्यास सताई न बादल की फटी है छाती न उससे खिलवाड़ हुआ है
न कचरे सी हुई है काया न बादल ने देखी यारों
अपनी संतानों की माया जब भी बादल हुआ अकेला धरती से मिलने आया है पर धरती ने हर सुख–दुख में खुद को बस तन्हा पाया है बादल तो है स्वप्न के जैसा कभी डराए कभी वो भाए पर धरती है जीवन नेहा पीड़ा सह कर हंसती जाए बादल तो है रूप नीर का कभी ठोस है कभी तरल है पर देकर नए रूप सभी को आज भी धरती बड़ी सरल है धरती है ब्रम्हांड की बेटी जलधर जिससे बड़ा निकट है होना बादल सुगम न हो पर धरती होना बड़ा विकट है
नेहा सोनी, दतिया मध्य प्रदेश