बारिश की बूंदे ये बातें करती हैं ………
गीत सावन…
बारिश की बूंदे ये बातें करती हैं .
धरती को छूकर वो सांसे भरती हैं.
मीठे मीठे अहसासों के आंगन में
परियाँ जलकण बनकर हमसे मिलती हैं..
बारिश की बूंदे ये बातें करती हैं…
धरती को छू कर वो सांसे भरती है…
सौंधी सौंधी खुशबू मन छू जाती है
भंवरे तितली कलियां गलियां भाती हैं
पाती- पाती में भरकर जैसे यौवन
हरियाली धरती की गोद सजाती है.
बारिश की बूंदे ये बातें करती हैं
धरती को छूकर वो सांसे भरती हैं…
रिमझिम सी ऐसी बरसातों में ही फिर.
यादों वाले थैले खोले जाते हैं
आभासी दुनिया मे देखो तब जाकर
मोती जैसे लोग तलाशे जाते हैं ..
ऐसे ही लम्हों को छूकर के ही तब .
लब पे मुस्कानों की बगियां खिलती है
बारिश की बूंदे ये बातें करती है
धरती को छूकर वो सांसे भरती है….
नदियां कल कल छल छल बहती जल भर के
वसुधा सुख पाती जल आलिंगन करके.
नव पल्लव डाली में खिलते सावन में
नव रस घुलता जैसे मानव जीवन में
नव तरुणी की धानी चूनर के जैसी
अति शुचि फिर पावन ये वसुधा लगती है….
बारिश की बूदें ये बातें करती है
धरती को छूकर वो सांसे भरती हैं
चौमासे के पहले पहले इस जल से.
वसुधा अनुपम पावन सी हो जाती है
कोयल के गीतों को सावन में सुनकर
मन की डोरी तुम तक पेंग बढ़ाती है
सुंदरता के ऐसे अविरल दर्शन से..
इस जीवन की पीड़ाए भी टलती है
बारिश की बूंदे ये बातें करती हैं
धरती को छूकर वो सांसे भरती हैं….
~ मनीषा जोशी मनी
ग्रेटर नोएडा