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दोगला समाज

आजकल दो केस बहुत अधिक चर्चित हैं। एक भारतीय महिला एस .डी .एम और दूसरा पाकिस्तानी महिला का। इन दोनों मामलों को अगर तटस्थ होकर देखा जाए तो समाज का एक तरह की दो बातों को अलग – अलग नज़र से देखना उसका दोगलापन साबित करता है। यही साबित करता है कि समाज पुरुष प्रधान है व उसकी सही तथा गलत की अपनी ही परिभाषा है, अपने मापदंड हैं।


जैसे कि एक का स्वागत बहुत धूमधाम से हो रहा है और दूसरी को हद से ज्यादा जलील किया जा रहा है। क्या शायद इसलिए कि एक महिला पाकिस्तानी है और दूसरी भारतीय तभी पुरुष प्रधान समाज को यह लग रहा है कि कोई दूसरा देश जिसे वह अपना विरोधी मानता है वहाँ की महिला का उसके पास आना उसकी ही जीत है? क्या कोई भारतीय महिला का सम्बन्ध इसी तरह से पाकिस्तान में होता तो उसे इसी नज़र से देखा जाता? या फिर कोई महिला बेचारी है या समान्य है उसका फैसला और एक सशक्त महिला का फैसला दो अलग चीज़ें है? सच्ची मोहब्बत, दो प्यार करने वालों को मिलने देना चाहिए आदि शब्द प्रयोग करने वाले न्यूज चैनल्स व अन्य लोगों की भाषा दूसरे केस पर आते ही इतनी कड़वी क्यों हो जाती है? अगर विवाह पवित्र बंधन था तो दोनों ही विवाहित भी थीं। और यदि एक का फैसला जिस्मानी भूख है तो दूसरी का क्यों नहीं।


दोनों के व्यक्तिगत कारण क्या थे यह पूरी सच्चाई कोई नहीं जानता अतः कौन सही और कौन गलत यह भी कोई नहीं बता सकता तो फिर सही गलत का फैसला एकदम से कैसे कर लिया जाता है? सही -गलत की मानक परिभाषा भी सही है या गलत यह भी एक और अलग प्रश्न है। लेकिन समाज का एक ही कृत्य को देखने के नजरिये में इतना अंतर उसे दोगला अवश्य साबित करता है।

~ कविता प्रकाश
हरियाणा

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