पता नहीं ये बस हमारी मान्यता है या हमारी श्रद्धा का सुखद परिणाम, बात कुछ क्षण पहले की है ………..
पता नहीं ये बस हमारी मान्यता है या हमारी श्रद्धा का सुखद परिणाम, बात कुछ क्षण पहले की है मेरी आठ वर्षीय बिटिया जो मेरे बगल में सो रही थी अचानक से उठ कर बैठ गई जिसे हम लोग आम भाषा में कहते हैं “नींद उचट जाना ” मैंने उसके सिर पर हाथ रखा और दुलारते हुए पूछा”क्या हुआ बाबू “तो वो बोली “माँ ऐसा लगा मैं नींद फिसल गई “मेरे मुँह से अनायास ही ये वाक्य निकला”कोई बात नहीं, हनुमान जी का नाम लो और सो जाओ बेटा सब ठीक है “हालांकि उसने वैसा ही किया और पुनः सो गई, लेकिन मैंने जितनी जल्दी ये सलाह दी उतनी ही तत्परता से बिटिया ने मान भी ली…. विचार करने लगी की यही क्यों मैं उसे और भी किसी तरीके से समझा सकती थी और सुला सकती थी, मेरे अंग्रेजी मीडियम वाले बच्चों को क्या पड़ी है की मैं उन्हें राम या हनुमान की आस्था से सिंचित करूँ, उनके लिए तो सुपरमैंन और मारवल के सुपरहीरो काफ़ी हैं, हमें तो उन्हें मॉर्डन बनाना है ना “जय श्री कृष्ण “या फिर “राम राम ” के सम्बोधन की जगह गुडमॉर्निंग और goodnight सिखाना है क्योंकि हम अगर पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण नहीं करेंगे तो तथाकथित रूप से हम पीछे रह जायेंगे….फिर याद आया ये शब्द मेरी माँ के भी होते थे,जब भी कोई उलझन हो, चाहे परीक्षा का पहला दिन हो या बुखार में तपता शरीर,बस माँ यही कहतीं”भगवान का नाम लो सब ठीक हो जायेगा “हम दो पल के लिए ही सही उस परम शक्ति को याद ज़रूर करते और विश्वास करते माँ की बात पर ही सच में सब ठीक होगा, वो एक भजन है ना की”ज़िन्दगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के, महलों में राखे चाहे झोपड़ी में वास दे “कुछ वैसी ही कहानी थी हमारी माँ के संस्कारों के साथ और एक आस्तिक परिवार के वातावरण में हमारी…सोचने लगी की अगर मेरी माँ ने ये संस्कार ना दिए होते तो मैं अपनी बच्ची को ये संबल ये संस्कार कैसे दे पाती अपनी सनातन परम्परा में हम कभी स्वयं को सर्वज्ञानी नहीं समझते हम इसका श्रेय अपने गुरु, माता पिता एवं ईश्वर को देते हैं ताकि हमारे भीतर हमारा परम शत्रु अहंकार जन्म ना ले सकेआस्था की ये परम्परा टूटने ना पाए हम कितने ही मॉर्डन क्यों ना हो जाएँ कितनी ही एडवांस व्यवस्था में जीवन यापन क्यों ना करें, हैं तो हम सब उस परमात्मा की छत के आश्रय में ही ये बात कभी ना भूलें।
मैंने कोई नया या महान काम नहीं किया लेकिन गर्व होता है अपनी सनातन संस्कृति पर जहाँ हम “सर्वें भवन्तु सुखिनः ” का भाव लेकर चलते हैं, धरती को माता और सूर्य को देव मानते हैं हम प्रकृति का धन्यवाद करते हैं…. बच्चों को संस्कारों से सींचते रहिये, जरूरी है अपनी आस्था को जीवित रखिये।
~प्राची मिश्रा
बैंगलोर