समर्थन और विरोध विचारों का होना चाहिए व्यक्ति समाज या रिश्तों का नहीं ………

जो व्यक्ति गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं रखता वह व्यक्ति समानता चाहता है क्यों?कल मैने एक पोस्ट डाली थी।कि नकारात्मक व्यक्ति के पास पैसा आते ही ब्याहता को पहले छोड़ता है।इस विषय पर लोगों ने अपने अपने मत से टिप्पणियाँ की ,ये सच है ऐसा क ई स्त्रियों ने भी किया है पर वह उनके करने का कारण पुरुष ही है क्योंकि उसी ने उन्हें यह करना सिखाया है।हमेशा से स्त्रियों पर अत्याचार होते रहे उनका शोषण होता रहा पर धीरे- धीरे स्त्रियों ने भी अपना वर्चस्व बनाने की सोची और जीवन बदलने के कदम उठाने लगी जिन स्त्रियों के पंख थे वो उडी़ उनकी सोच ने आगे बढ़ने के लिये ख़ुद को तैयार किया और अब स्त्रियाँ स्वावलंबी हो गयी परंतु आज भी पुरुष वादी सोच जिस पर हावी है कि स्त्री को बराबर स्वीकार नहीं कर पा रहे वो ऐसा करने लगी है जो पुरुष किया करता था कुछ ज्यादा तर छुपे रिश्ते होते थे। क्योंकि दुनिया में सब कुछ जानने के लिये बहुत सी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी।आज के समय में कोई भी काम होता है या रिश्ते भी हो नाजायज़ तो सामने आ ही जाते हैं।इसका कारण बहुत सी सुविधाओं का होना है पहले तो लोग चिठ्ठियाँ भी महिने भर बाद पड़ पाते थे।बदलाव समाज में हर चीज़ में हुआ है तो जाहिर सी बात है रिश्तों में सबसे पहले होगा पहले स्त्रियाँ कहीं घर से निकलने नहीं दी जाती थी। अब विदेशों में अकेली रहती और कार्य करती है।जो रिश्तों के प्रति समर्पित होगा वह कहीं भी रहे साथ ही होगा जो नहीं होगा तो अपने पीठ से बांध के घूम लो तो भी नहीं होगा बात भरोसे की है और एक दूसरे को स्वच्छंद एवं उनके सपनों के साथ समर्थन करने की है किसी को कमतर आंकने या ख़ुद को बड़ा देखाने की नहीं स्त्री पुरुष दोनों एक ही योनी से आते हैं।दोनों का समय और पीड़ा एक होती है तो अधिकार दोनों के जीवन जीने के समान होने चाहिए।एक दूसरे को नीचा वही दिखाता है जो स्वयं की सोच से नीचा है अगर एक दूसरे को स्वीकार नहीं कर सकते तो सहमत होकर रास्ता बदलो किसी को अपमानित करके ख़ुद को अच्छा साबित करने का मतलब ही यह है कि आप पहले ही नीचे गिर चुके हो तभी उसके बारे में गंदगी फैला रहे हो समाज में बात मौर्या एक ही उदाहरण नहीं है। तमाम है जिन्हें लोग जानते तक नहीं।बराबरी बर्दाश्त करनी होगी अंहकार जीवन नहीं जीने देगा।बहुत कुछ बदलने के लिये ख़ुद से भी छोड़ना होगा इस पर तमाम बाते बनाने से सच नहीं बदलता खुद को बदलना पड़ता है स्वीकार करना पड़ता है। समाज तो कुछ भी स्वीकार नहीं करता हर चीज़ का विरोध करता है मगर जिसमें हिम्मत होती है तो समाज को स्वीकार करने पर मजबूर कर देता है और समाज स्वीकार करता भी है।

~ शिखा सिंह
उत्तर प्रदेश