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वो वीर अकेला ऐसा था, ना की उसके जैसा था …….

अभिमन्यु वध

वो वीर अकेला ऐसा था
ना की उसके जैसा था

थी हार खड़ी होकर निश्चित,
मृत्यु भी निकट होकर सज्जित।

पर पीठ दिखा कैसे देता,
वो वीर था अर्जुन का बेटा।

रण से अर्जुन को भ्रमित किया,
फिर चक्रव्ययूह निर्मित किया।

था ज्ञान अधूरा आधा उसका,
पर बन ना सका बाधा उसका।

वो कोमल सा सुकुमार सा था,
पर रण मे खडग तलवार सा था।

वो चीर गया चक्रो को सात,
जहाँ लगे ही थे उस पर घात।

दु:शासन, दुर्योधन और शकुनि,
थे छली, कपटी और कुटिलमनी।

गुरु द्रोण ,कृपा, कर्ण,अश्वत्थामा,
थे संग अधर्म के जग जाना कह लाऊंगा।

अभिमन्यु के थे ज्वलंत चक्षु,
जब रण मे प्रत्यक्ष हुए शत्रु।

हुंकार प्रबल कर वो बोला,
छन भर को जरा जो मै डोला,

तो वीर नही कह लाऊंगा,
मुख अपना नही दिखाऊँगा।

अभिमन्यु ने बाण चलाये थे जब,
अरि भी विस्मित् हो गए थे तब।

वो एक अकेला भारी था,
शौर्य से भरी चिंगारी था।

फिर वार किये सातों ने संग,
बालक के किये थे अंग भंग।

रण की मर्यादा का अपमान हुआ,
कायरता वीरों का प्रतिमान हुआ,

जब भेद रहे वे छाती उसकी,
तब सुनो व्याकुल वाणी उसकी,

मै गर्वित हूँ निज कौशल पर,
तुम लज्जित होना अपने छल पर,

पीड़ा ना मुझे इन घावों की,
ना मृत्यु के निकट आभासों की,

इस बात की नही थी स्वीकृति मुझे,
फिर भी कायरों से मिली वीरगति मुझे।

~ नीतू गर्ग ( स्वरचित)

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