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दौडती भागती सडकों पर बोझिल जिंदगियों के बीच भागती गाडियों के पहियों सी ……….

ढूंढती हुई तलाश

दौडती भागती सडकों पर
बोझिल जिंदगियों के बीच
भागती गाडियों के
पहियों सी ,
चलती दिनचर्या
दिशाहीन
घिसती-पिटती
तितलियों के सम्मोहन में
कभी कुछ पल को विहसती,
फिर देख सूखी शाख
पेड की
अपनी राह पकडती
पिघलती सडकों सी सासें
गिन-गिन
दायरों में सिमटी,
चंद पलों की मोहताज
शिकायती बयार
हृदय पटल तरसते
प्रेम के जल तरंग को,
खोजती जीने का सामान
राह जुदा चलती
न जाने कहाँ
पहुँच जाती है,
अपने आप को
प्रकृति के कण-कण में
ढूँढती हुई- तलाश! !

~ डॉ॰ मेघना शर्मा ( बीकानेर )

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