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ख़ुद से ख़ुद की अनबन जैसा …मन के निर्मल दरपन जैसा ….

ख़ुद से ख़ुद की अनबन जैसा

मन के निर्मल दरपन जैसा

ख़ुद से ख़ुद की अनबन जैसा

मेरा लिखना यूं हो जाये

मौत के बाद के जीवन जैसा

पल में हँसना-रोना कर दे

ना होने को होना कर दे

जो पाये को खोना कर दे

व्याकुल मन का कोना कर दे

ऐसा लिक्खूँ जो अनंत की

छाया बनकर सुख दे जाये

ऐसा लिक्खूँ जो भावों की

क्यारी क्यारी को महकाए

कोई अपनी महबूबा को

मेरे लिक्खे शेर सुनाए

कोई मेरी नज़्म पढ़े और

हालो-माजी में खो जाये

कोई अपने बच्चों को जब

मेरे लिक्खे गीत रटाये

कोई मेरी कविता पढ़कर

सार ज़िंदगी का समझाये

शब्दामृत बनकर लौटे तो

जीवन-विष पीना कहते हैं

मेरी नज़र में इसको ही तो

सचमुच का जीना कहते हैं

क्या कहते हो ?

क्या लगता है ?

~ डॉ.पूनम यादव

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