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सबके मन में प्यार बसाकर,मैंने तो घर बार सजाया, कोई हमसे रहें न रूठा …….

बके मन में प्यार बसाकर
मैंने तो घर बार सजाया
कोई हमसे रहें न रूठा
अपना दिल हर बार रुलाया।

भूल गई मै अपने सपने
तेरे सपने अब मेरे अपने
दिल से सारी ख्वाहिश छोड़ी
यादों को हर बार भुलाया।

अपना दिल हर बार रुलाया

मैं कैसी बेजान खड़ी थी
तेरे खातिर सबसे लड़ी थी
जब देखी अनदेखी तेरी
खुद को ही हर बार
भुलाया।

अपना दिल हर बार रुलाया।

सबकी मनमर्जी को जीकर
घुट घुट हालाहल पीकर
महल बनाकर खुद ही ढाया
प्रतिमा को प्रतिमा ही
बनाया
अपना दिल हर बार रुलाया

~ प्रतिमा दीक्षित (अप्रतिम )
उत्तर प्रदेश

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