क्या कहता है कुंडली में मंगल शुक्र संयोग– जीवन में व्यभिचार या सच्चे प्रेम की अभिलाषा ?
(मंगल और शुक्र ग्रह संयोग के विषय में शेष भाग- 2)
●मंगल शुक्र ग्रह संयोग: व्यक्ति को प्रेम सम्बंध में क्यों देते हैं असफलता? क्या वाकई इस ग्रह संयोग के कारण जीवन में एक से अधिक प्रेम संबंध स्थापित होते हैं? इसके पीछे छिपा है एक बड़ा कारण– कई कुंडलियों पर ज्योतिषीय अध्ययन के दौरान यह सही सिद्ध हुआ है कि मंगल शुक्र का संयोग वाकई व्यक्ति के प्रेम सम्बंधों को प्रभावित कर देता है। यह ग्रह युति व्यक्ति को सच्चे रिश्ते की तलाश में जीवन में कई बार भटकाव भी देती है। उसकी तलाश प्राय एक छोर पर जाकर आधी अधूरी भी लौट आती है। इसके प्रभाव से ऐसे व्यक्ति पूरी निष्ठा, ईमानदारी से अपने साथी के साथ प्रेम संबंध को स्थायीत्व में परिवर्तित करने पर बल अधिक देते हैं लेकिन इसके बावजूद भी इस युति के कई दुष्परिणाम भी उन्हें भोगने पड़ते हैं। क्युंकि जिस प्रकार के भले आचरण, चारित्रिक गुणों की बातें ऐसे लोगों में देखी जा सकती हैं, वह सभी विशेषताएं इनके साथी में प्राय विपरित ही पायी जाती हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इनके साथी कई बार इनके साथ छल करने वाले, गैर जिम्मेदार, मौका परस्त और इनके प्रति समर्पित नहीं होते हैं। असल में धोखेबाजी, चालबाज़ी के गुण इनके बजाय इनके प्रेमी या प्रेमिका में पाये जाते हैं। व्यक्तिगत रूप से छल, कपट की बातों को झेलने के कारण कई बार देखा गया है कि ऐसे व्यक्ति प्रेम संबंध में हिंसात्मक रवैया भी अपना लेते हैं या ऐसे कड़वे अनुभव मिलने पर भविष्य में दिल फेंक आशिक की भूमिका में अपने लिये इधर-उधर संभावनाएँ खोजते हैं। इनके मन में फिर से वह विश्वास जन्म नहीं ले पाता, जो पहले प्रेम या किसी रिश्ते में मिले छल से टूट चुका होता है। फिर आत्मा से आत्मा का मिलन वाले प्रेम की परिभाषा इनके लिए किसी डिब्बे में हमेशा के लिए बंद हो जाती है। क्युंकि इतना सब कुछ हो जाने के बाद प्रेम के बीज तो इनमें शेष रहते नहीं, अब यहां से ही इनके चारित्रिक पतन की शुरुआत होने की सम्भावना बनने लगती है। शोध में मैं ने यह भी सिद्ध पाया कि इस युति का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव शादीशुदा महिलाओं को विवाह उपरांत झेलना पड़ता है। यदि वह इस युति के प्रभाव के कारण प्रेम विवाह करती हैं, तो उनके साथ विवाह के बाद उनके जीवनसाथी या उसके पारिवारिक सदस्यों द्वारा कई तरह से शोषित, घरेलू हिंसा, प्रताड़ित की जाने की सम्भावना बढ़ जाती है। क्युंकि एक महिला के लिये यह युति प्राय उनके सपनों के राजकुमार मिलने की इच्छा को पूरा नहीं कर पाती। इस युति के अशुभ प्रभाव से कई बार यह भी स्थिति बनती है कि विवाह के बाद पति पत्नी के बीच दुर्व्यवहार बढ़ जाता है और घरेलू जीवन में नैतिक मूल्यों का पतन भी होने लगता है। यदि किसी महिला की कुंडली में यह युति हो तो उन्हें ज्योतिषीय सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि उपरोक्त लिखित नकारात्मक प्रभाव पुरुष, स्त्री दोनों को जीवन में मिल रहे हैं तब समझिये, कि पुरुष की कुंडली में शुक्र और महिला की कुंडली में मंगल ग्रह कमज़ोर या पीड़ित अवस्था में हैं। यदि कुंडली में शुक्र शुभ अवस्था में नहीं है तो स्त्री के प्रेम को तरस जायेंगे और यदि कुंडली में मंगल उत्तम स्थिति में नहीं है तो महिला ससुराल में हो रहे किसी अत्याचार से अपनी सुरक्षा नहीं कर पायेगी। किसी महिला की कुंडली में मंगल का मजबूत होना, उस महिला की कुंडली में बैठा हुआ वह शक्तिशाली पुरुष है, जो विवाह के बाद महिला के सौभाग्य, शक्ति में वृद्धि करता है और उसे उसकी रक्षा करने के गुणों से (डिफेंसिव) पूर्ण करता है। कुंडली में मंगल शुक्र युति होने पर स्त्री, पुरुष जातकों को सच्चे प्रेम और केवल शरीर की भूख के बीच फर्क समझना सीखना चाहिए। क्युंकि इन्हें अधिकतर ऐसे ही लोग मिल जाते हैं, जो शुरुआत तो आत्मीय प्रेम के आधार पर करते हैं लेकिन प्रेम का अन्त भूख या ज़रूरत समाप्त होते ही कर देते हैं।
●किस प्रकार यह मंगल शुक्र ग्रहीय संयोग किसी व्यक्ति में चारित्रिक अवगुण भर देता है, विवाहेतर-अनैतिक रिश्ते व प्रेम सम्बंधों में छल कपट की स्थिति को जन्म देता है और कभी-कभी कुछ विशेष स्थितियों में वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मचा देता है! इस विषय में कुछ निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदु मेरे ज्योतिषीय शोध के आधार पर इस लेख में शामिल किये गए हैं– यदि इस युति में शुक्र, मंगल में से कोई एक ग्रह कमज़ोर हो, नीच, वक्री स्थिति में हो, या पाप ग्रहों से दृष्ट हो, या दोनों में से किसी का संबंध तीसरे, छठे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव से बन रहा हो। इसके अलावा कुंडली में अन्य स्थितियाँ भी जैसे- मंगल और शुक्र मेष, वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और मीन राशि में हों और यहां राहु, शनि या चन्द्रमा में से कोई एक ग्रह स्थित हो जायें, तो यह काफी हद तक एक मजबूत आधार बन जाता है, जो निजी रिश्तों में विच्छेद का कारण बनता है एवं दोनों में विश्वास, प्रेम की कमी कर देता है।
यदि लग्न में इन तीनों ग्रहों राहु, मंगल, शुक्र की मौजूदगी है, तो लोगों की ज़बान से व्यक्ति के चरित्रहीनता के किस्से या प्रेम संबंध के चर्चे ज़ोर शोर से सुनने को मिलेंगे। यह भी सम्भव है कि व्यक्ति किसी ऐसे स्त्री या पुरुष के साथ प्रेम या विवाह संबंध जोड़ ले जो किसी अन्य जाति, संस्कृति से हो और कई बार राहु, शुक्र के प्रभाव से ऐसे व्यक्ति को इंटरनेट पर भी प्रेम जाल बिछाते देखा जा सकता है। क्युंकि राहु ग्रह सोशल मीडिया के माध्यम से प्रेम करवाकर व्यक्ति के बारे में अफवाहें, चारित्रिक पतन की खबरें वायरस की तरह फैलाने के लिए मुख्य भूमिका निभाता है। हालांकि किसी कुंडली का अध्ययन करते समय अन्य बातें भी जांचने के लिए महत्वपूर्ण समझी जाती हैं, उन्हें भी शामिल करना आवश्यक होता है। हमने इस लेख के माध्यम से केवल एक सामान्य प्रयास किया है कि इस युति के संदर्भ में ज्योतिषीय शोध के माध्यम से निकट पहुंचा जाये व उचित दिशा में इसका अर्थ समझा जा सके। जोकि अभी तक सिर्फ तोड़ मरोड़ कर उल्टे-सीधे तरीके से ही समझी गई है। इसलिये मंगल और शुक्र के इस द्वीग्रह संयोग के विषय में दोनों ही प्रकार की स्थितियाँ नकारात्मक एवं सकारात्मक रूप से कुछ मुख्य ज्योतिषीय आधार व कारण पाठकों के समक्ष स्पष्ट किये गये हैं। हम आशा करते हैं कि सभी ज्योतिष जिज्ञासुओं को हमारा यह सारगर्भित ज्योतिषीय लेख पसंद आये।
~ ज्योतिर्विद् अशनिका शर्मा
(नोट: यह लेख किसी भी प्रकार के सटीक निष्कर्ष पर आश्वस्त नहीं करता है एवं यह पूर्णतः ज्योतिषी के निजी शोध पर आधारित है। सटीकता के लिए व्यक्तिगत कुंडली की विवेचना करना अनिवार्य है।)