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उत्तरकाशी में रेस्क्यू का आखिरी राउंड, दो से तीन घंटे में आ सकती है खुशखबरी, ग्रीन कॉरिडोर बनाने का काम पूरा

यमुनोत्री नैशनल हाइवे पर बन रही सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था, जिसमें उसमें काम कर रहे 41 श्रमिक फंस गए थे। उन्हें बाहर निकालने के लिए युद्ध स्तर पर कई एजेंसियों के साथ मिलकर बचाव अभियान चलाया जा रहा है।

अजीत कुमार / नेहा पाठक

उत्तरकाशी। सिलक्यारा सुरंग में बचाव के लिए बन रही हॉरिजॉन्टल टनल में हाथ से खुदाई के लिए 6 रैट माइनर पहुंचे हैं। बचाव कार्यों की देखरेख कर रहे BRO (सीमा सड़क संगठन) के पूर्व महानिदेशक हरपाल सिंह ने बताया कि टनल में अमेरिकी ऑगर मशीन का फंसा ज्यादातर हिस्सा निकाल लिया गया है। बचे हिस्से को निकालने के बाद रैट माइनर हाथ से खुदाई शुरू करेंगे। इसके लिए तैयारियां चल रही हैं। पतले से पैसेज में अंदर जाकर ड्रिल करने वाले मजदूरों को रैट माइनर्स कहते हैं। दिल्ली और झांसी समेत कई जगहों से रैट माइनर्स सिल्क्यारा टनल साइट पर पहुंचे हैं। ये सभी मैनुअल यानी हाथ से खुदाई के एक्सपर्ट हैं। ये दो-दो के ग्रुप में टनल पैसेज में जाएंगे और बची हुई 12 मीटर की हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग को हाथों से अंजाम देंगे।

शुक्रवार की दोपहर में 25 टन वजनी ऑगर मशीन जब टूटी, तब तक बचावकर्मी होरिजेंटल मलबे को 47 मीटर तक भेद चुके थे और अंदर फंसे मजदूरों तक पहुंचने के लिए 10-12 मीटर ड्रिल करना ही बाकी था। हाथ से खुदाई के बाद पाइपों को डालने के लिए हमने 800 मिलीमीटर व्यास के फ्रेम तैयार कर लिए हैं। हम आधा मीटर से एक मीटर की दूरी लेते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ेंगे। अगर सब कुछ ठीक रहा और कोई अड़चन नहीं आई तो मलबे का 10 मीटर का हिस्सा 24-36 घंटों में ड्रिल किया जा सकता है।

ऑगर मशीन अब और नहीं
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हसनैन ने साफ किया कि बचाव अभियान में अब ऑगर मशीन की कोई भूमिका नहीं होगी, क्योंकि यह बार-बार खराब पड़ जा रही थी। उन्होंने बताया कि वर्टिकल ड्रिलिंग के बगल में 6-8 इंच की एक और ड्रिलिंग की जा रही है, जो 76 मीटर तक पहुंच गई है। यह हमारी वैकल्पिक लाइफलाइन यानी मजदूरों तक जरूरी सामान पहुंचाने वाली होगी। हाथ से हॉरिजॉन्टल खुदाई और मशीन से वर्टिकल ड्रिलिंग दो तरीके हैं, जिन पर इस समय ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। सिलक्यारा के अलावा सुरंग के दूसरी ओर बड़कोट छोर से भी हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग जैसे विकल्पों पर काम किया जा रहा है। माइक्रो टनलिंग विशेषज्ञ क्रिस कूपर ने बताया कि हमें 9 मीटर हाथ से सुरंग बनाने का काम करना है।

यह इस बात पर निर्भर करेगा कि जमीन कैसे व्यवहार करती है। सुरंग बनाने में अगर हम कुछ जालीदार गर्डर से टकराते हैं, तो हमें उन्हें काटना होगा, लेकिन हमें विश्वास है कि हम इससे पार पा सकते हैं। टनलिंग एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स ने कहा कि हम जो प्रगति कर रहे हैं, उससे मुझे टीम पर बहुत गर्व है। हाथ से खुदाई शुरू होते ही हम तेजी से आगे बढ़ेंगे.

मज़दूरों पर रोबॉट से नज़र
टनल के अंदर फंसे 41 मजदूरों पर नजर रखने के लिए रोबोटिक्स की मदद ली जा रही है। इसके लिए लखनऊ से AI ऐंड रोबोटिक्स डिवेलपर मिलिंद राज को बुलाया गया है। ये लोग मजदूरों के बर्ताव और उनकी हेल्थ को 24X7 मॉनिटर करेंगे। टनल के अंदर फंसे मजदूरों की हताशा की स्थिति को डिटेक्ट करेंगे। दूसरा- टनल के अंदर अगर कोई गैस निकल रही है तो उसे डिटेक्ट करेंगे। तीसरा- टनल के अंदर जहां नेटवर्क भी ठीक से नहीं मिल पा रहा है, वहां हम हाईस्पीड इंटरनेट सिस्टम देंगे।

बर्फबारी होने का अनुमान

मौसम विभाग ने 4000 मीटर से ऊंचाई वाले उत्तराखंड के इलाकों में बर्फबारी और बारिश की चेतावनी दी है। इससे बचाव अभियान को अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। बचाव अभियान से जुड़े अधिकारी कह रहे हैं कि हमें हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार किया जाता है। यह चिंता की कोई नई बात नहीं होगी। इससे बचाव अभियान पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

अडाणी समूह ने कहा, सुरंग से हमारा नाता नहीं
अडाणी समूह ने उन दावों का खंडन किया है, जिसमें कहा गया है कि यह सुरंग बनाने में उनके समूह का हाथ है। सोशल मीडिया मंच X पर समूह ने लिखा, हमारे नोटिस में आया कि कुछ तत्व उत्तराखंड में टनल के दुर्भाग्यपूर्ण धंसाव से हमारे संबंध जोड़ने की गंदी कोशिश कर रहे हैं। हम ऐसी कोशिशों और ऐसा करने वालों की कड़ी निंदा करते हैं। हम जोर देकर कहते हैं कि अडाणी समूह या इसकी किसी भी सहयोगी संस्था का टनल निर्माण के साथ सीधा या परोक्ष कोई भी संबंध नहीं है। समूह ने कहा कि यह सुरंग नवयुगा इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड बना रही है।

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