भारतीय वैदिक ज्योतिष और इसका वैज्ञानिक महत्व ………
●भारतीय वैदिक ज्योतिष, प्राचीन काल से ही भारतीय सभ्यता, संस्कृति की विश्वस्तरीय प्रसिद्धि में सहयोग करके अपनी उत्कृष्ट भूमिका निभा रही है। किन्तु यह बेहद अफसोस की बात भी है कि, हमारे ही भारतीय समाज के आधुनिक युग की भूखी दौड़ में शामिल कुछ लोग, वैदिककाल से उपकार करने वाली और उपचार करती आ रही इस विद्या का उपहास उड़ाने में अपनी शान समझने के साथ साथ स्वयं को महाज्ञानी होने का दर्जा देते हैं। अपनी मूल जड़ों से कट जाना, पौराणिक मान्यताओं, शास्त्रीय ज्ञान के महत्व को धित्कारना और दिमाग में आधुनिक होने का नशा भरकर इधर-उधर की निराधार बातें करना,अपने जीवन के स्थिर होने और उन्नतिशील होने की शायद वह गारंटी समझते हैं। समय के साथ आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यदि यह दृष्टिकोण आपके ही मूल तत्त्वों को नष्ट कर रहे हैं, और आपका विश्वास समाप्त कर रहे हैं, तो यह कोई सामान्य बात भी नहीं है। कहीं ना कहीं आपके परिवर्तन से आपकी मूल सभ्यता को नुकसान हो रहा है। भारत में पाश्चात्यीकरण को बढ़ावा मिलने के कारण, आज लगभग सभी पर, वे चाहे युवा पीढ़ी हो, वरिष्ठ नागरिक हों, पश्चिमी वैज्ञानिक दृष्टिकोण हावी होता जा रहा है, जो निराधार कुतर्क को बढ़ावा दे रहा है। यह विशेष रूप से भारतीय पौराणिक मान्यताओं, वेद, ग्रन्थों, शास्त्रों, पुराणों के अस्तित्व के साथ बेसिर-पैर की तुलना करने का दृष्टिकोण लोगों में पैदा कर रहा है। आज मैं उसी संदर्भ में इस लेख के माध्यम से कुछ महत्वपूर्ण बिंदु “आधुनिक विज्ञान और भारतीय वैदिक ज्योतिर्विज्ञान” की तुलना करते हुये प्रस्तुत कर रही हूँ, कि किस तरह लोग एक ऐसे मनोविकार के दुष्प्रभाव में आते जा रहे हैं और अपनी सभ्यता, संस्कृति आदि को ना अपनाकर, उन्हें अपने ऊपर बंधन समझकर,आधुनिक मान्यताओं की ओर आकर्षित हो रहे हैं—
●बात यदि रोग/व्याधि पर की जाये, तो आधुनिक विज्ञान केवल आपके ही शरीर का परीक्षण करके ये बतायेगा कि आपको क्या बीमारी चल रही है। लेकिन, भारतीय वैदिक ज्योतिर्विज्ञान, आपकी कुंडली के ग्रह, नक्षत्रों आदि मुख्य बिंदुओं का गहन परीक्षण करके आपके शरीर को क्या रोग मिल रहा है या भविष्य में मिल सकता है, एवं आपकी सन्तान/पत्नी/माता पिता किस रोग से ग्रस्त हो सकते हैं केवल और केवल आपकी ही कुंडली/वर्ग कुंडलियों के अति सूक्ष्म अध्ययन से यह बताने की कुवत रखता है, क्षमता रखता है।
●ज्योतिष विद्या, प्राचीन काल से ही भारतीय सभ्यता व संस्कृति के मूल आधार को नष्ट होने से बचाती आ रही है। ज्योतिष कभी भी गलत नहीं है, यह बात बड़े स्तर पर प्रमाणित भी हो चुकी है और ना ही कभी गलत होगी। किन्तु इस विद्या को धारण करने वाला व्यक्ति ही अपने ज्ञान से इसे सही साबित करता है या उसके अल्प ज्ञान के कारण अवश्य गलत साबित हो सकती है। ठीक उसी तरह, जैसे- विज्ञान का उचित-अनुचित प्रयोग,आधा अधूरा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति या चिकित्सक ही अवश्य विज्ञान को गलत साबित कर सकता हैं। जैसे किसी डॉक्टर की उपचारात्मक पद्धति हर किसी रोगी को माफिक नहीं आती और किसी को दवाई से विपरित प्रभाव होने के कारण डॉक्टर बदल भी दिया जाता है। तो ऐसी स्थिति में, हम ना तो ज्योतिष को गलत कह सकते हैं और ना ही विज्ञान गलत हो जाता है। यहां हम विज्ञान को पूर्णतः गलत या उसकी उपयोगिता को कम नहीं आँक रहे हैं। केवल यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि भारतीय ज्योतिर्विज्ञान को केवल टोने टोटके, या कोई चमत्कारिक काम करने वाली विद्या के तौर पर देखना, मूर्खतापूर्ण बात है। क्युंकि, ज्योतिष भी आज के इस युग में विज्ञान के समान ही नवीन शोध प्रणाली ग्रहण कर रही है और इसकी भी वैज्ञानिक उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है। फिर चाहे वह भारत के हर क्षेत्र के मौसम परिवर्तन की स्थिति को स्पष्ट करना हो या आयुर्वेद/आयुर्विज्ञान के माध्यम से किसी रोग को ठीक करना हो। जिस प्रकार आयुर्वेद में मानव के शरीर के अंदर क्या चल रहा है, क्या क्या व्याधियाँ पनप रही हैं, उनको नाड़ी के माध्यम से जांचने परखने का विधान है। यह जांच का कार्य भी आयुर्वेदाचार्य द्वारा आयुर्वेद एवं ज्योतिष शास्त्र के परस्पर सहयोग से किया जाता है। क्युंकि, ज्योतिष में भी वर वधू की कुंडली मिलान करते समय उनकी नाड़ी समान होने पर वैवाहिक संबंध नहीं जोड़ा जाता, यह उनके सन्तान पक्ष के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। और इसी नाड़ी विधान को आयुर्वेद में भी रोग का उपचार करने के लिए प्राथमिकता दी जाती है।
●यदि ज्योतिष विद्या को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचना समझना है, तो गीता ग्रंथ, में भी आईवीएफ जैसी आधुनिक तकनीक का ज़िक्र है। वह भी जिस युग में रची गई थी, एक बार उसके बारे में भी अवश्य नज़र डालियेगा। आज आधुनिक विज्ञान भी उसी प्रकार से हमारे ऋषियों की दी गई इस वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण कर रहा है। “जीव से जीव की उत्पत्ति” बिना सम्भोग के, बिना वैवाहिक संबंध जोड़े कैसे हो?? यह हमारे ग्रन्थों, शास्त्रों में भी अंकित है। किसी भी व्यक्ति को इस अनमोल विद्या पर उंगली उठाने से पहले और अपने कुतर्क को तर्क मानने से पहले, हमारे शास्त्रों, पुराणों, ग्रन्थों का अध्ययन अनिवार्य रूप से करना चाहिए। बिना पढ़े तो हम कुछ भी साबित करने की योग्यता वैसे ही नहीं रखते हैं।
●भारतीय ज्योतिष विद्या को धित्कारने वाले सभ्य समाज के आधुनिक सोच के लोग ही, आज आधुनिक विज्ञान के तरह-तरह के बेतुके, महंगे परीक्षण से ऊब चुके हैं और अपने जीवन के गिरते हुये स्तर को उठाने के लिए ज्योतिर्विज्ञान का सहारा लेकर जीवन को विभिन्न प्रकार से सुधारने का प्रयास करके सफल हो रहे हैं।
●भारतीय प्राकृतिक संसाधनों के विषय में हमारे वेद-पुराणों में भी उल्लिखित है कि उस पौराणिक काल में पीपल, बरगद, नीम आदि वृक्षों को देव तुल्य मान्यता इसलिए ही प्राप्त थी, क्युंकि ये रोगनाशक, जीवनदायक, आयुदायक आदि शुभ तत्वों से युक्त थे और आज भी हैं। किन्तु उस युग में अंग्रेजी विज्ञान ना तो विकसित था, ना ही भारतीय लोगों का कोई संपर्क था और ना ही उसको आज के समान उस काल में रत्ती भर भी प्राथमिकता दी जाती थी। हमारी भारतीय संस्कृति, पद्धतियाँ- पूर्णतः चारों वेद, पुराण, धार्मिक ग्रन्थों, शास्त्रों द्वारा संचालित थी। लेकिन आज के युग में जिन आधुनिक सोच के लोगों का यह मानना है कि “ये विद्या एक अन्धविश्वास है आदि आदि”, इनकी अधूरी जानकारी के लिए यह बता देना उचित होगा कि ज्योतिष स्वयं में कोई अन्धविश्वास की बात या ऐसे किसी विषय से सम्बंधित ज्ञान नहीं है, अपितु यह भी ज्योतिर्विज्ञान है, जिसे भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी मान्यता देकर इसकी वैज्ञानिक उपयोगिता की पुष्टि की है। प्रसिद्ध ज्योतिष ऋषिवर श्री के एन राव जी ने ज्योतिष के भारतीय परिवेश को ध्यान में रखते हुये वैज्ञानिक फाएदे बताते हुये उच्चतम न्यायालय में इसके लिए एक लम्बी लड़ाई लड़ी और ज्योतिष को अंधविश्वास की विद्या से “विज्ञान” का दर्जा दिलाया।
●जिन लोगों का यह मत है कि “ज्योतिष विज्ञान नहीं है”, तो उन्हें यह समझना होगा कि हमारी सभ्यता ही ऐसी है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोणों से कोसो दूर है। अत: किसी भी वस्तु का उसके सकारात्मक पहलू या उससे लाभ होने के कारण हम भारतीयों के लिए वह वस्तु या विषय पूजनीय, दैवज्ञ या देव तुल्य सम्मान आसानी से हासिल कर लेती है। ये परम्परा आज भी कायम है और शायद भारतीय परिवेश में निरंतर लागू रहेगी भी।
●हमारे भारतीय परिवेश में, संस्कृति में ज्योतिष शास्त्र का सरलतम रूप वेद, शास्त्रों से भी युगों युगों से जुड़ा हुआ है। बल्कि, असल में कहना तो यह चाहिए कि वेदों में ही यह वर्णित है कि- ” ज्योतिष की उत्पत्ति ही वेद से हुई है, ज्योतिष= ज्योति+ईश= ईश्वर की ज्योति है”। वेदों में भी ज्योतिष को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
●साथ ही साथ यहाँ यह बात मैं अवश्य प्रकट करूँगी कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य भी है एवं सत्यता भी, कि कुंडली परीक्षण करने वाले व्यक्ति के पास ज्योतिष की किस शाखा/सिद्धान्त का पर्याप्त एवं गूढ़ ज्ञान है, उसी प्रकार से यह सुनिश्चित होगा कि आपकी कुंडली पर आधारित जो विश्लेषण किया गया है वह कितना सटीक किया गया है और किस सिद्धान्त के अन्तर्गत किया गया है। उसी प्रकार से फल की अपेक्षा करें। कई बार ज्योतिष के जानकार/परामर्शदाता यह भी प्रक्रिया अपनाते हैं कि वह विभिन्न ज्योतिषीय सिद्धांतों/शाखाओं को आधार बनाकर किसी व्यक्ति की कुंडली का “मिश्रित विश्लेषण” करने का प्रयास करते हैं। इससे समाधान की बजाय विपरित प्रभाव ही निकलता है। बिल्कुल उसी तरह जैसे- कोई एलोपेथी के डॉक्टर, अपनी एलोपेथी दवाई के साथ होम्योपैथी की दवा साथ खाने के लिए कहे, और सेवन करने पर व्यक्ति को बजाय लाभ के साइड इफेक्ट हो जाये। कुछ इसी प्रकार से ज्योतिष के विभिन्न सिद्धान्तों का यह मिश्रण भी अधिकतर कुंडली परीक्षण करने पर घातक सिद्ध होता है। ऐसा असफल प्रयास अधिकतर वह लोग ही करते हैं, जिनका ज्योतिष की किसी एक शाखा/सिद्धांत पर या तो अनुभव ना हो, वरदहस्त्र ना हो या उनमें दक्षता का अभाव हो और किसी एक शाखा को पूर्ण रूप से आत्मसात करने में कोई कमी रह गई हो।
●युगों युगों से हम भारतीयों का उपकार करने वाली और इस विद्या के उपचारात्मक महत्व को समझने का प्रयास करना सिखिये एवं इसके प्रयोग को हल्के में लेने की भारी भूल करने से पहले अवश्य सोचिये, और कोई ठोस आधार पर बात कीजिये। यदि कोई ठोस साक्ष्य नहीं है, तो कुतर्की ना बनिये और अपने विचारों को बाहर निकालने से पहले ज्ञान इकट्ठा कीजिये।
●इस लेख के माध्यम से अन्त में यह अवश्य लिखना चाहूंगी कि ज्योतिष विद्या को ढोंगियों ने बहुत ही नुकसान पहुंचाया है और जाने अंजाने में इसका स्तर गिरा रहे हैं। जिस कारण से समाज में एक वर्ग विशेष युगों युगों से सम्मानित इस प्राचीन विद्या के प्रति अविश्वसनीय दृष्टिकोण रखने पर मजबूर हो गया है। अज्ञानी, अनुभवहीन व ज्योतिष विषय में विधिवत ज्ञान व शिक्षा ग्रहण किये बिना ही कुछ लोग यहाँ वहां से बेतुके, आधे अधूरे, अशास्त्रीय ज्ञान, निजी कुतर्क प्रस्तुत करने में लगे हुए हैं और उनके इन कुकृत्यों की वजह से ही वैदिककाल से लोगों का उपचार व उपकार करने वाली यह विद्या अपना विश्वास, अस्तित्व व सम्मान भारतीय लोगों के बीच खोती जा रही है। आज इस विद्या के मजबूत पुनरुत्थान की अत्यंत आवश्यकता है।
ज्योतिर्विद् अशनिका शर्मा
मेरठ, उत्तर प्रदेश।