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आज वर्षा रात भर होती रही, यूँ लगा जैसे निशा रोती रही …….
आज वर्षा रात भर होती रही
यूँ लगा जैसे निशा रोती रही
श्याम मुख घन से छिपाए बावरी
भूमि का अस्तर अचल धोती रही
यूँ लगा जैसे निशा…
कौन सा दुख दंश मन में पालती
या विरह की टीस अब तक सालती
उठ रहा है ज्वार कैसा भाव का
हो गया फिर से हरा कोई घाव सा
पीर के दृग नीर सब खोती रही
यूँ लगा जैसे निशा…
मंद है चंचल पवन की रागिनी
पुष्प पल्लव पर परत है ग्लानि की
रिस रहा नभ का सकल आक्रोश है
वेदना में मग्न है क्यों यामिनी
एक कलिका गोद में सोती रही
यूँ लगा जैसे निशा रोती रही
आज वर्षा रात भर होती रही
मौन हो विह्वल विचरती बावरी
कह रही क्या मेघ स्वर में सांवरी
है कभी विद्रोह तो अनुरोध भी
दामिनी में वो दिखाती क्रोध भी
राग के सुख बीज भी बोती रही
यूँ लगा जैसे निशा…
~ प्राची मिश्रा