STORY / ARTICLE
सच सच कहना क्या दिखता है ? हाथों पर तू क्या लिखता है ?
सच सच कहना क्या दिखता है ?
हाथों पर तू क्या लिखता है ?
जमा हुआ आँखों का पानी
क्या बाज़ारों में बिकता है ?
सूरज की कोई चमक खरीदे
कोई तिमिर से प्रेम निभाए
मखमल भी चुभ रहा किसी को
कोई सागर भी पी जाए
ऊँचे ऊँचे छत छज्जों से
क्या टूटा रस्ता दिखता है ?
सच सच कहना क्या दिखता है ?
कौन कहाँ कब कैसे वाले
प्रश्न कई हैं हमने पाले
सबके अपने अपने सांचे
समय समय पर चेहरे ढाले
इक धुंधली सी शाम के आगे
सूरज थोड़ा भी टिकता है?
सच सच कहना क्या दिखता है ?
देखो! ये सब ठीक नहीं है
दुःख में सुख की रीत नहीं है
आशा के सौ दीप जलाये
उजियारा ये भीख नहीं है
समय पलट कर देखे जिसको
ऐसा कौन यहाँ दिखता है ?
~ प्राची मिश्रा