औरों के संग रो लेने से, अपना भी दुःख कम होता है, आंसू में आंसू मिलने से पीड़ा का संगम होता है
औरों के संग रो लेने से, अपना भी दुःख कम होता है
आंसू में आंसू मिलने से पीड़ा का संगम होता है
औरों के संग रो लेने से, अपना भी दुःख कम होता है
हृदय लुटाया पीर कमाई, सबकी केवल एक कहानी
प्रेम नगर में सब दुखियारे, कैसा राजा, कैसी रानी
हर आंसू का स्वाद वही है, कैसा अपना, कौन पराया
दुःख तो केवल दुःख होता है, जिसके हिस्से, जैसा आया
चूम पसीने के माथे को, पुरवाई पाती है ठंडक
धरती को तर करने वाला बादल ख़ुद भी नम होता है
डूब रहे को अगर सहारा दे दे, तो तिनका तर जाए
जो मानव की पीड़ा लिख दे, गीत उसी के ईश्वर गाए
प्यासे अधरों को परसे बिन, पानी कैसे पुण्य कमाए
सावन में उतना सावन है, जितना धरती कण्ठ लगाए
भाग्य प्रतीक्षारत होता है, सिर्फ़ हथेली की आशा में
स्नेह भरा बस एक स्पर्श ही छाले का संयम होता है
अनबोला सुन लेने वाला, स्वयं कथानक हो जाता है
जो आंसू को जी लेता है, वो मुस्कानें बो जाता है
जो मन डाली से पत्ते की बिछुड़न का अवसाद चखेगा
उसको पाकर मोक्ष जिएगा, जीवन उसको याद रखेगा
उजियारे के रस्ते बिखरा हर इक तारा केवल जुगनू
अँधियारे को मिलने वाला दीपक सूरज-सम होता है
– मनीषा शुक्ला