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स्त्री पुरुष की तुलना

माज की अजीब विडंबना है जो सच है उसे स्वीकार करना मुश्किल हो जाता है ,
कल्पना के साय में जीना बेहद सुखद महसूस कराता है । पुरानी परम्पराओं के अनुसार स्त्रियों को घर से निकलने नहीं दिया जाता था। पुरुसत्तामक समाज के नियम कायदे स्त्रियाँ follow करती थी।उन्हें मजबूरी में भी follow करना पड़ता था।
रंगमंच का कार्यक्रम हो या किसी भी तरह का कार्यक्रम शादी समारोह सभी जगह पुरुष ही स्त्री बनके जाते थे।
और जब स्त्री के चरित्र या उसके जीवन से जुड़ा पहलू या बात उठती थी तो पुरुषों से यही सवाल किया जाता कि
तुम रक्षा नहीं कर सकते तो चूड़ियाँ पहन लो !
चूड़ियाँ स्त्री की कमजोरी की निशानी नहीं है चूड़ियाँ स्त्री कलाई मजबूत रखने के लिये पहनती थी ताकि स्त्री अपनी कलाई को रोक सके गलत जगह पर हाथ न उठ जाये नहीं तो स्त्री वही करती जो पुरष स्त्री पर बात बात पर हाथ उठा कर करते हैं ।
स्त्री हमेशा अपने को रोक कर रखा है उसने मर्यादा निभाई है पर पुरुष मजबूर कर रहा है मर्यादा तोड़ने के लिये ।
परंतु इन शब्दों से आहत होकर मर्दानगी जाग जाती और रक्षा सुरक्षा दोनों अपने कंधे पर उठा लेता लेकिन स्त्री को बाहर नहीं निकलने देता। लेकिन समाज के ये दकियानूसी कायदे कानून तोड़कर स्त्रियों ने मुकाम हासिल किया और खुद को आगे बड़ा कर नये पायदान बनाए। आज वो समाज की एक बेहतरीन रूप रेखा बन गयी हैं ।
दुनिया में हर कार्य करने में सक्षम है। कोई भी कार्य स्त्रियों से अछूता नहीं है। चन्द्रमा पर पहुंचने से लेकर समाज की हर टेक्नोलॉजी तक उनके हाथों में आगया है और ये गर्व करने की बात है ।
स्त्रियों को , समाज में स्त्रीसत्तात्मक समाज बनाया जा सकता है !ये स्त्रियों के ऊपर निर्भर करता है ।
परंतु समाज अभी इस दायरे से बाहर नहीं निकला कि स्त्री अपने सपने पूरे करने के लिये अकेली निकल सकती है रात को या दिन को या समाज में पुरुषों से या लड़को से बात करने के लिये आज भी आज़ाद नहीं है?
या ससुराल से सताई हुयी स्त्रियों को अपने तरीके से जीने की आजा़दी नहीं है। इस समाज में स्त्रियों को आज भी उसी स्थित से गुजरना पड़ता है। लेकिन एक पुराना दौर फिर से दोहराया जा रहा है वो है पुरुषों का स्त्री बन कर कार्य करना या स्त्री के भेष को अपना कर कोई बुरे कार्य करना। सीरियल में देखिये पुरुष ही अधिक स्त्रियों के परिधानों में नज़र आते है समाज की दुर्घटनाओं में नज़र आते है।
ऐसा क्यों स्त्रियों पर सवाल खड़े होते है मगर पुरुष स्त्री बन कर जीने में आनंद लेते है । क्या समाज की परिस्थितियों में इतना अभाव है जो पुरुषों को स्त्री की रचना खुद में करनी पड़ रही है।

बदनाम स्त्रियाँ होती है क्यों?
पुरुषों को स्त्री बन कर घूमना मजबूरी पहले होती थी मगर अब स्त्री बनना पुरुषों को शौकिया अदांज हो गया है जिसके लिये वो कुछ भी करने /करवाने को तैयार रहते हैं…..

मगर हर घर में बेटी आज भी दूसरी पैदा हो जाये तो ख़ुशी से स्वीकार नहीं कर पाते केवल बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा ही महत्वपूर्ण है । कोई सुरक्षा नहीं महिलाएं आज भी  उसी स्थित में है कुछ नहीं बदला । जो सक्षम नहीं है वो अपमान के घेरे में रहती है।

~शिखा सिंह

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