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लिखने को तो लिख सकती हूँ मैं होठों की लाली भी ………

लिखने को तो लिख सकती हूँ मैं होठों की लाली भी
लुच्चों के संग से नोंक झोंक कर बज सकती है ताली भी

पर मैं भी श्रृंगार लिखूं तो हाड़ी रानी कौन लिखेगा
कौन लिखेगा सावरकर को, काला पानी कौन लिखेगा

कौन लिखेगा शेखर से छल, भगत की फाँसी कौन लिखेगा
कौन लिखेगा मंगल पांडे, रानी झांसी कौन लिखेगा

अच्छा माना इन सब पर तो तुम भी लिख सकते हो
ओज का धोखा देकर तुम भी मंचो पर बिक सकते हो

भगवा कुर्ता पहन के तुम ओज हिमालय दिख लोगे
तुम चेतक के गुण गाकर, राणा का भाला लिख लोगे

पर बोलो क्यों कलम काँपती है बर्बादी लिखने पर
जला गोधरा लिखने पर, कारण जेहादी लिखने पर

पर बोलो क्यों जाली वाली टोपी से तुम डरते हो
और कहो किसके डर से तुम भाईचारा पढ़ते हो

यदि खुद को कवि कहते हो तो सच्ची बातें बोलो ना
हिन्द का गजवा समझाओ, अल तकिया को खोलो ना

बोलो न कैसे दुष्टों ने माँ का आँचल छाँट लिया
और निकम्मों ने साजिश कर कैसे भारत बाँट लिया

सबसे ज्यादा किससे ख़तरा ये दुनियाँ को बतलाओ
बात करो नोआखाली की, नालंदा को समझाओ

बतलाओ तो कौन है शोषित, बात करो मजबूरों की
बोलो किसके हाँथ में पत्थर, चाह किसे है हूरों की

खुद को श्रेष्ठ बताने वाले जब हुए नपुंसक, मौन रहे
फिर निकिता, श्रृद्धा, साक्षी के हत्यारों की कौन कहे

तुमने भाईचारा पढ़कर खुद को ऊँचा बना लिया
किन्तु तुम्हारी कविताओं ने सबको कायर बना दिया

खुद को ओज हिमालय बोलो, स्वयं प्रशंसा खूब करो
किन्तु सत्य न लिख पाओ तो खुद नाले में डूब मरो

~ समीक्षा सिंह ( उत्तर प्रदेश )

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