STORY / ARTICLE

धरती के सारे कोनों को, हमने अब तक छान लिया है ……..

रती के सारे कोनों को

हमने अब तक छान लिया है

और गगन के चाँद सितारों

को हमने पहचान लिया है

पर हमको अब तक दुनिया में

मनचाहा मन मिला नहीं है !

पर हमको अब तक दुनिया में

मनचाहा मन मिला नहीं है !

कहीं बात में स्वाद न आया

कहीं बात को तरस गए हम

चाहे जो भी बात रही हो

मन का आँगन रहा सदा नम !

मन के इस गीले आँगन को,कोई सूरज मिला नहीं है

और कभी मन के सूरज को,गीला आँगन मिला नहीं है !

घावों को जो भर दे ऐसी

मिली न हमको प्रीत पराई

देख न पाया जगत अभी तक

उधड़े मन की ये तुरपाई

कोई छलता रहा सदा ही,कोई खेल रहा है खेला

जो भीतर बाहर दिखलाए,ऐसा दर्पण मिला नहीं है !

धन के कल्पवृक्ष पर हमने

फूल भाव का एक न देखा

धन के हाथों में देखी पर

कितने ही रिश्तों की रेखा

सम्बन्धों की डोर खींचकर,सबको अपना बता रहे हैं

बिन बांधे ही बाँध सके जो,ऐसा बंधन मिला नहीं है !

~अंकिता सिंह

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