आहुति देकर नित निद्रा की, मन की व्यथा चुनी है मैंने …….
आहुति देकर नित निद्रा की
मन की व्यथा चुनी है मैंने
नीम रतजगों में तारों से
गोपन कथा सुनी है मैंने
लंबी रातों का सदियों तक
चलने वाला इंतज़ार हूँ
नींद नहीं भेजी आँखों में
मैं ख़्वाबों की गुनहगार हूँ
कुछ साँसों का क़र्ज़ मिला है
गिन-गिन कर लौटाना भी है
कठिन सफ़र है रस्ता बोझिल
लेकिन वापस जाना भी है
कुछ जीवन गिरवी है मुझ पर
कुछ जीवन पर मैं उधार हूँ
नींद नहीं भेजी आँखों में
मैं ख़्वाबों की गुनहगार हूँ
दुःख को जीना,दुःख को पीना
मेरी प्रतिपल की क्रीड़ा है
मेरी जानिब आने वाली
ख़ुशियों के मन में व्रीड़ा है
नख से शिख तक देखो मुझको
मैं दुःख का इक शाहकार हूँ
नींद नहीं भेजी आँखों में
मैं ख़्वाबों की गुनहगार हूँ
मेरी इन बोझिल आँखों ने
अरमानों के लाशे ढ़ोये
इक ज़ाहिर मुस्कान सजाई
बिन आँसू के नैना रोये
जीवन के इस चित्रपटल का
मैं इक बेरंग इश्तिहार हूँ
नींद नहीं भेजी आँखों में
मैं ख़्वाबों की गुनहगार हूँ
~ डॉ.पूनम यादव