केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करेगी कैविएट, वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर

केंद्र सरकार का कैविएट दाखिल करने का मुख्य मकसद यह सुनिश्चित करना है कि वक्फ कानून को लेकर कोई जल्दबाजी में फैसला न हो. सरकार चाहती है कि कोर्ट इस कानून के पीछे की मंशा और इसके फायदों को समझे।
समय टुडे डेस्क।
नए वक्फ कानून के खिलाफ बढ़ते विरोध के बीच केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दाखिल की है. यह कदम वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में उठाया गया है. सरकार ने कोर्ट से गुजारिश की है कि इन याचिकाओं पर कोई फैसला सुनाने से पहले उसका पक्ष जरूर सुना जाए।
क्या है कैविएट और क्यों दाखिल की गई?
कैविएट एक कानूनी शब्द है, जिसका मतलब होता है कि कोई पक्ष कोर्ट में यह अर्जी देता है कि उसकी बात सुने बिना कोई फैसला न लिया जाए. यानी केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर कोई भी आदेश पारित करने से पहले सरकार की राय को सुना जाए. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार नहीं चाहती कि कोर्ट कोई एकतरफा फैसला दे, जिससे इस नए कानून पर सवाल उठें या इसे रोका जाए. सरकार का मानना है कि उसने यह कानून सोच-समझकर बनाया है और उसे अपना पक्ष रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए.
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 क्या है?
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को हाल ही में संसद में पास किया गया था. इसे पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दी. यह कानून वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को बेहतर करने के लिए लाया गया है. सरकार का दावा है कि इससे पारदर्शिता आएगी और वक्फ संपत्तियों का सही इस्तेमाल होगा. लेकिन कई लोग खासकर मुस्लिम संगठन इस कानून को अपने अधिकारों में हस्तक्षेप बता रहे हैं. उनका कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को कमजोर करता है और संविधान के खिलाफ है. इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट में इस नए कानून के खिलाफ 10 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल हुई हैं।
कौन-कौन पहुंचा सुप्रीम कोर्ट?
वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों में कई बड़े नाम शामिल हैं. इसमें ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलमा-ए-हिंद जैसी संस्थाएं हैं. इसके अलावा पार्टियों के नेता भी कोर्ट पहुंचे हैं. इनका कहना है कि यह कानून संविधान के कई नियमों जैसे धार्मिक आजादी और समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि सरकार इस कानून के जरिए वक्फ संपत्तियों पर ज्यादा नियंत्रण लेना चाहती है. कई जानकारों का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में यह स्पष्ट कर चुका है कि ‘एक बार वक्फ, हमेशा के लिए वक्फ’ होता है. यानी अगर कोई संपत्ति वक्फ को दे दी जाती है तो उस संपत्ति का स्वरूप आगे कभी नहीं बदलेगा।
केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट जाना
केंद्र सरकार ने इन याचिकाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की ताकि वह अपनी बात रख सके. सरकार का कहना है कि यह कानून देश के हित में है और इसे बनाने में सभी नियमों का पालन किया गया है. सरकार नहीं चाहती कि कोर्ट बिना उसकी बात सुने कोई फैसला दे, जिससे कानून पर रोक लग जाए या उसे रद्द कर दिया जाए। इसलिए उसने पहले ही कोर्ट में अर्जी देकर कहा कि कोई भी फैसला लेने से पहले उसका पक्ष सुना जाए।
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 15 अप्रैल को होने की संभावना है. द हिंदू अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक शीर्ष अदालत ने यह तारीख तय की है, हालांकि अभी शीर्ष कोर्ट की वेबसाइट पर इसकी पुष्टि नहीं हुई है. इससे पहले सात अप्रैल को चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने जमीयत उलमा-ए-हिंद के वकील कपिल सिब्बल को भरोसा दिया था कि इन याचिकाओं को जल्दी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार किया जाएगा।



