STORY / ARTICLE

◆मैं बता तो दूँ◆

मैं जता तो दूँ

वो दबे जज़्बात

मैं बता तो दूँ

जो दिल में है बात

फिर बिखर जाएगा

रिश्तों का घरौंदा

टूट पड़ेगा आसमान

ढह जायेंगी कई दीवारें

मैं सोच अपनी चला तो दूँ

भर चुकी हूँ विचारों से

अंतहीन द्वेष प्रहारों से

अंतर्मन में बंदी है जो

मेरी जैसी एक और मैं

स्वतंत्र उसे कर तो दूँ

फिर रह जाऊंगी अकेली

मैं असली चेहरा दिखा तो दूँ

हर रोज़ खोदती हूँ

एक कब्र मन में

और दबा देती हूँ

कई राज़ और जज़्बात

हर किसी के दिल में

होता है ये कब्रिस्तान

मैं अकेली तो नहीं

वो गड़े मुर्दे मैं जगा तो दूँ

पर है क्या कोई

उन्हें समझने वाला

मैं बात अपनी समझा तो दूँ

हर रोज़ जब होती हूँ तैयार

नहीं भूलती हूँ पहनना

एक मुखौटा दुनिया के लिए

एक नहीं कई हैं मेरे पास

जो बदलती हूँ मैं

वक्त और हालत देखकर

एहसास और इंसान देखकर

मैं असलियत अपनी दिखा तो दूँ

कौन पहचानेगा मुझे

मैं चेहरे से पर्दा हटा तो दूँ।

ये सारी क़वायद

दुनिया में जीने के लिए

साथ सबके हँसने

और रोने के लिए

ये कहानी है सबकी

इंसानों की हर बस्ती की

पर कौन मानेगा

ये कहानी है उसकी

मैं भीड़ में उंगली उठा तो दूँ।

~ प्राची मिश्रा , बैंगलोर

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