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13 साल की उम्र में बनी नेशनल चैंपियन, अब एशियाड में पिता के त्याग का उतारा कर्ज

समय टुडे डेस्क।

टोक्यो ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद पहली बार मल्टी स्पोर्ट्स इवेंट खेल रहे है। उन्होंने फैंस की शिकायतें दूर करते हैं मेडल्स की लाइन लगा दी है। इस बार कई नए नामों ने पोडियम पर जगह बनाई। इन्ही में शामिल हैं ईशा सिंह जिन्होंने एक नहीं दो नहीं बल्कि चार मेडल अपने नाम किए हैं।

ईशा ने 10 मीटर एयर पिस्टल महिला टीमें इवेंट में सिल्वर और इसी के व्यक्तिगत इवेंट में भी सिल्वर मेडल अपने नाम किया। इससे पहले उन्होंने 25 मीटर पिस्टल के महिला इवेंट में गोल्ड और इंडीविजुअल में सिल्वर अपने नाम किया। महज 9 साल की उम्र में पहली बार राइफल पकड़ने वाली ईशा के लिए इस सफलता का सफर बेहद ही खास रहा है।

नौ साल की उम्र में ईशा अपने पिता सचिन के साथ पहली बार शूटिंग रेंज पर गई थी। यहीं पर उन्होंने पहली बार गोलियों की आवाज सुनी और उनका मन इसमें रम गया। पहली बार जब उन्होंने राइफल उठाई तो वह गिर गईं थी। इसके बाद माता -पिता ने उन्हें शॉट गन दिलाई। धीरे-धीरे ईशा पिस्टल इवेंट में राज्य स्तर पर मुकाबले जीतने लगी। साल 2018 में हुई नेशनल चैंपियनशिप में वह पहली बार सुर्खियों में आईं जब उन्होंने हीना सिद्धु और मनु भाकर को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। उस समय वह महज 13 साल की थी और इस टूर्नामेंट की सबसे युवा गोल्ड मेडलिस्ट बनी थी।

ईशा के पिता रैली ड्राइवर थे और चाहते थे कि बेटी भी खेल की दुनिया में नाम बनाए। बेटी के सपने को पंख देने के लिए उन्होंने अपने करियर पर ब्रेक लगा दिया। ईशा को टूर्नामेंट्स में जाने के लिए किसी के साथ की जरूरत थी और इसी कारण उनके पिता सचिन ने रैली ड्राइविंग छोड़ दी। ईशा के लिए उन्होंने फीजियो और मनोवैज्ञानिक का भी इंतजाम किया।

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