छठ पर्व : ‘छठ के गीत के बिना अधूरा लगता है त्योहार, विदेशों में भी खूब गाए जाते हैं’ : मालिनी अवस्थी
समय टुडे डेस्क।
मालिनी अवस्थी ने छठ पर्व को लेकर अपने मन के भाव को व्यक्त किए। कहा कि 70-80 के दशक में छठ पर्व उतना धूमधाम से नहीं मनाया जाता था, लेकिन समय बदलने के साथ अब इसका स्वरूप बदलता जा रहा है। यूपी, बिहार, दिल्ली, मुंबई, लखनऊ से लेकर अब सात समंदर पार यह पर्व पूरे श्रद्धाभाव से मनाया जा रहा है।
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए। केरवा जे फरेला घवद पे, ओह पे सुगा मेडरॉय। उगा ए आदित मल। इस तरह के एक दो नहीं बल्कि कई ऐसे छठ के गीत हैं, जिसको सुनने के बाद मन तरंगित हो उठता है। आदि देव सूर्य की उपासना, छठी मइया की श्रद्धा, गांव, घर और अपनी जड़ें बस ऐसा लगता है उड़के मां की गोद में फिर से पहुंच जाए। ये भावनाएं नहीं बल्कि छठ से अंतर्मन का जुड़ाव है। लोकगायिका मालिनी अवस्थी का कहना है कि छठ के गीतों के बिना यह त्योहार अधूरा सा लगता है।
मालिनी अवस्थी ने छठ पर्व को लेकर अपने मन के भाव को व्यक्त किए। कहा कि 70-80 के दशक में छठ पर्व उतना धूमधाम से नहीं मनाया जाता था, लेकिन समय बदलने के साथ अब इसका स्वरूप बदलता जा रहा है। यूपी, बिहार, दिल्ली, मुंबई, लखनऊ से लेकर अब सात समंदर पार यह पर्व पूरे श्रद्धाभाव से मनाया जा रहा है। 20 साल से हर साल छठ पर्व पर छठ के गीत गाती हूं। छठ क गीत केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों में लोकप्रिय हो रहे हैं। वाकई बहुत तप और कठिन वाला व्रत है। इसको मनाने की शक्ति भी गीत-संगीत से ही मिलती है। छठ पर्व के उत्सव में तीन दिन गाकर आस्था, भक्ति, शक्ति को स्वर देकर बहुत अच्छा सा लगता है।