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इलाहाबाद हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, पति-पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता

समय टुडे डेस्क

लाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में अहम टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता है.इसके साथ ही अदालत ने कपल को तलाक लेने की अनुमति दी। कोर्ट ने पति को तीन महीने के भीतर पत्नी को 1 करोड़ रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता देने का भी निर्देश दिया। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की डिवीजन बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने कहा कि पार्टियों को एक साथ रहने के लिए मजबूर करना सार्वजनिक हित के लिए अधिक हानिकारक है।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कराए हैं और संपत्तियों को लेकर उनके बीच गंभीर विवाद हैं। इसके अलावा, दोनों पक्ष एक-दूसरे के खिलाफ शादी से बाहर संबंध रखने का भी आरोप लगा रहे हैं, जिससे वे एक-दूसरे के प्रति गहरी नफरत के बावजूद एक साथ रहने के लिए मजबूर हो रहे हैं। ये क्रूरता है।

क्या था पूरा मामला?

फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक लेने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की थी। उसी पर हाईकोर्ट का फैसला आया है. दरअसल, 2002 में शादी हुई थी। शुरुआत में, पति ने 2016 में निर्विरोध तलाक की डिक्री हासिल कर ली। हालांकि, पत्नी ने तलाक की डिक्री को वापस लेने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया, जिसे अनुमति दे दी गई. इसके बाद, तलाक की याचिका बहाल कर दी गई और दोनों पक्षों ने पारिवारिक अदालत के समक्ष अपनी दलीलें पेश कीं।

पति के वकील ने कोर्ट से कहा कि पत्नी ने उस पर आपराधिक मामलों में झूठा आरोप लगाया था, जो अंततः उसके बरी होने में समाप्त हुआ. इन निराधार दावों के साथ-साथ अन्य कानूनी संघर्षों के कारण भावनात्मक संकट पैदा हुआ और यह क्रूरता के बराबर है। आगे आरोप लगाया कि दोनों 2014 से अलग रह रहे हैं और इन कानूनी लड़ाइयों की कड़वाहट ने सुलह को असंभव बना दिया है।

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