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अब यह सोचने का गहन विषय है कि क्या हर परिवार की कुंडली में केवल ….

सूर्य– सूर्य पितृ पक्ष यानी पिता का सुख, पैतृक संपत्ति, घर, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान आदि का कारक है।

राहु– जो दादा और दादा के परिवार की सामाजिक,आर्थिक,शारीरिक आदि स्थिति को स्पष्ट करता है।
अधिकतर पितृ पक्ष,पिता या पैतृक सम्बंध की ओर से धनी, प्रतिष्ठित परिवारों की कुंडली में सूर्य राहु युति या इनका परस्पर प्रभाव देखा जा सकता है।

अब यह सोचने का गहन विषय है कि क्या हर परिवार की कुंडली में केवल सूर्य राहु युति के कारण ददिहाल पक्ष या पितृ पक्ष सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित, मोटी आसामी वाले, धनाड्य ही मिलेंगे? क्या सबसे अधिक धनी व्यक्ति यही लोग होंगे जिनकी कुंडली में यह युति या ऐसा कोई प्रभाव व्याप्त हैं? क्या इस युति के कारण व्यक्ति का स्वयं का जीवन सुखी हो जाता है? नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है।
यह पूर्ण रूप से एक गलत धारणा एवं परिभाषा है।

सबसे पहले ये जाने कि ज्योतिषीय आधार पर यह युति शुभ प्रभाव युक्त नहीं कही गई है। यह कुंडली में ग्रहण दोष की स्थिति को जन्म देती है। जिसके पृथक पृथक प्रभाव से व्यक्ति का जीवन प्रभावित होता रहता हैं। कई बार यह युति वंशानुगत नकारात्मक प्रभाव देने का क्रम भी जारी रखती है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक यह प्रभाव निरंतर आगे बढ़ता रहता है।

आजकल ज्योतिष जगत में एक नया चलन चल रहा है कि किसी भी अशुभ प्रभाव देने वाले ग्रह युति को नये तरीके से परिभाषित किया जा रहा है जिसमें उनके मूल तत्व को एवं नेसर्गिक अशुभ स्वभाव को छोड़कर शुभ प्रभाव देने वाला बताया जा रहा है। एक ज्योतिष के ज्ञाता के लिए यह बेहद आवश्यक है कि किसी युति के बारे में उचित-अनुचित का अन्तर समझते हुये ही परिभाषा गढ़नी चाहिये। मनचाहे ढंग से नई नई बातें लिखकर उसके मूल प्रभाव को समाप्त नहीं किया जा सकता है। कुंडली के अन्य ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव आदि की स्थिति को देखते हुये ही युति के बारे में विवेचना करनी चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कई ग्रंथ हैं जिनमें सूर्य राहु युति को ग्रहण की संज्ञा दी जाती है। ज्योतिष के जनक पराशर ऋषी ने इस युति के प्रभाव उत्तम नहीं बताये हैं जबकि नाड़ी ज्योतिष अनुसार, कुंडली में यह युति समाज में प्रतिष्ठा, सरकार से लाभ आदि के बारे में परिभाषित करती है। नाड़ी ज्योतिष के माध्यम से यदि इस युति का फलित किया जाये तो जिनकी कुंडली में यह युति होती है ऐसे लोग राजनीतिज्ञ, समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति एवं कुशल नेतृत्व का प्रदर्शन करने के लिए जाने जाते हैं। किन्तु ज्योतिषशास्त्र के जनक एवं महान ज्ञाता ऋषी पराशर के अनुसार, यह युति व्यक्ति के वंशानुक्रम को भी नियन्त्रित करने वाली कही गयी है। क्युंकि पितृत्व सुख सूर्य ग्रह के अधीन है एवं राहु उसी सुख पर काली छाया के समान ग्रहण लगाने की स्थिति को जन्म देता है। भले ही सूर्य राहु युति किसी के दादा, पिता को सामाजिक रूप से विख्यात बनाये लेकिन कितने वर्षों तक यह सुख अग्रिम पीढ़ी तक स्थिर रहेगा, राहु की उपस्थिति ही यह बताने के लिए विशेष रूप से पर्याप्त है।
कई विभिन्न नये ज्योतिषीय आधार हैं जिनका मानना है कि इस युति के प्रभाव से व्यक्ति एक अच्छा राजनीतिज्ञ भी बन जाता है और उसके राजनीति में जाने की सम्भावना कई हद तक बढ़ जाती है। लेकिन यह भी पाराशर सिद्धांत अनुसार सौ प्रतिशत सत्य नहीं है। इस युति के कारण कई बार लोग अपने ही कार्यस्थल पर षडयंत्र, परिवार में राजनीति का भी शिकार होते हैं यह भी इस युति का एक अन्य पहलू है।

इस युति का प्रभाव कभी-कभी इतना दुखदायी भी होता है कि वर्षों तक किसी परिवार में सन्तान सुख तक प्राप्त नहीं हो पाता है। जिस कारण वंश परम्परा आगे नहीं बढ़ पाती है। सूर्य, राहु का प्रभाव कई तरह से व्यक्ति के जीवन को प्रताड़ित करता रहता है। घर की बहू, बेटियों तक के विवाह आदि कार्य संपन्न हो जाने पर भी वह या तो अपने वैवाहिक जीवन में किसी वजह से चिंतित रहने लगती हैं या फिर असाधारण स्वास्थ्य समस्याएँ, आर्थिक तंगी से जूझती रहती हैं।
ऐसे भी कई असंख्य लोग व परिवार हैं, जिनकी कुंडलियों में इस युति का घोर नकारात्मक प्रभाव देखा गया है। समय परिवर्तित होने के बावजूद भी उनके जीवन में समस्याओं का समाधान ही नहीं हो पाता है एवं कई बार तो उन्हें शिक्षा, व्यवसाय, करियर निर्माण में अस्थिरता देखने को मिलती है एवं उन्हें वह उचित परिणाम तक नहीं मिलते हैं जिस लायक उन्होंने जीवन में मेहनत की होती है।

हमारे आगे के अंक में अन्य ग्रह युतियों के लिये पढ़ें।

  • अशनिका शर्मा ( ज्योतिर्विद् )

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