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75 साल बाद LoC पर स्थित शारदा मंदिर में की गई नवरात्रि की पूजा, क्या है इसको लेकर मान्यता

गृहमंत्री अमित शाह ने 76 साल बाद पाक अधिकृत कश्मीर के शारदा मंदिर में पहली बार पूजा-अर्चना की. इस मंदिर की जीर्णोद्धार 23 मार्च 2023 को किया गया था। मान्यता है कि यह स्थान कश्मीरी पंडितों के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है. यह मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक है जो एक समय में पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका था।

विभाजन के बाद पिछले 75 वर्षों में पहली बार यहां ऐसा किया गया है। इस मौके पर हम्पी के स्वामी गोविंदानंद सरस्वती अपने अनुयायियों के साथ कर्नाटक में भगवान हनुमान की जन्मस्थली किष्किंधा से रथयात्रा पर यहां पहुंचे थे। इसके अलावा कुछ कश्मीरी पंडित तीर्थयात्री भी यहां मौजूद थे, उनमें से एक प्रसिद्ध थिएटर आर्टिस्ट ए के रैना हैं, जिन्होंने कश्मीर फाइल्स फिल्म में भी अभिनय किया है. विभाजन के बाद पहली बार नियंत्रण रेखा पर स्थित शारदा मंदिर में नवरात्रि पूजा करना एक बार फिर ऐतिहासिक क्षण था।

यहां जो मंदिर और गुरुद्वारा हुआ करता था, उसे 1947 में आदिवासी हमलों में जला दिया गया था. उसी तर्ज पर जमीन के उसी टुकड़े पर एक नया मंदिर और गुरुद्वारा बनाया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस साल 23 मार्च को टीटवाल में नियंत्रण रेखा पर स्थित शारदा मंदिर का उद्घाटन किया था. इस दौरान मंदिर में पंचलोहा मूर्ति प्रतिष्ठापित की गई थी। इससे पहले मां शारदा की मूर्ति को कर्नाटक के श्रृंगेरी से उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा के करीब स्थित टीटवाल तक ले जाने के लिए राष्ट्र यात्रा शुरू की थी।

अमित शाह ने कहा, इसने घाटी में शांति की वापसी का संकेत दिया है। गृह मंत्री ने कहा कि मंदिर में पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक लौ को फिर से जगाने का प्रतीक है. सेव शारदा कमेटी कश्मीर के प्रमुख रविंदर पंडिता ने कहा, “विभाजन के बाद पहली बार नियंत्रण रेखा पर स्थित शारदा मंदिर में नवरात्रि पूजा करना एक बार फिर ऐतिहासिक क्षण था। यहां जो मंदिर और गुरुद्वारा था, उसे 1947 में कबाइली हमलों में जला दिया गया था और उसी जमीन पर एक नया मंदिर और गुरुद्वारा बनाया गया है। शारदा मंदिर मुजफ्फराबाद से लगभग 140 किलोमीटर दूर और कुपवाड़ा से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर पीओके के पास नीलम नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर के निर्माण को लेकर कई मान्यताएं हैं।

कहते हैं कि सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान शारदा पीठ की स्थापना 237 ईसा पूर्व में हुई थी. वहीं, कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पहली शताब्दी के प्रारंभ में कुषाणों के शासन के दौरान हुआ था जबकि फैज उर रहमान केस स्टडी में कहा गया है कि राजा ललितादित्य ने बौद्ध धर्म के धार्मिक और राजनीतिक प्रभाव को बरकरार रखने के लिए शारदा पीठ का निर्माण किया था।

माना जाता है कि शारदा पीठ शाक्त संप्रदाय को समर्पित पहला तीर्थ स्थल है। कश्मीर के इसी मंदिर में सबसे पहले देवी जी की पूजा की गई थी. बाद में खीर भवानी और वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना हुई। कश्मीरी पंडितों का मानना है कि शारदा पीठ में पूजी जाने वाली मां शारदा तीन शक्तियों का संगम है। पहली शारदा (शिक्षा की देवी) दूसरी सरस्वती (ज्ञान की देवी) और वाग्देवी (वाणी की देवी).

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