मर्यादा पुरुषोत्तम राम ……. तन में राम, मन में राम

मर्यादा पुरुषोत्तम राम
तन में राम, मन में राम
राम ही ब्रह्मांड
राम ही जनाधार
हर सांस में राम, कण कण में राम।
देह की हर कोशिका में राम।
नसों, शिराओं,धमनियों में राम।
रोम- रोम में राम ।
जीवन में बस राम ही राम।।
न्याय करने को सदैव तत्पर राज पाट त्याग कर,
कटीले बियाबान वन में
रहे विचरते,
सब कुछ जानकर भी
सब्र से सारे कष्ट सहते,
वैभव विशाल सिंहासन ठुकराया
अनुज को उस पर बिठाया,
साक्षात प्रेम और न्याय की प्रतिमूर्ति,
मेरे तो बस राम ही राम।
तन में राम, मन में राम
हम सबके हैं राम।।
चाहत है उसे चरण कमल का
एक कुसुम बन पाऊं
ऐसा भाग्य जो पा जाऊं
तो जीवन सफल हो जाए हमारा
रामलला के इस उत्सव का
भव्य आयोजन अयोध्या नगरी का,
बरसों से चाहत अपनी
जो हो जाए पूरी
मैं मुस्काऊ और
तन मन खिल जाए
क्योंकि
तन में राम,मन में राम
ऐसे मेरे मर्यादा पुरुषोत्तम राम।

~ओम सिंह चैतन्य (ओम की लेखनी)
लखनऊ , उत्तर प्रदेश