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जब देखती हूं आसमान में उड़ते दो पंछी, एक दूसरे के साथ भी और पास भी ……….

ब देखती हूं आसमान में उड़ते दो पंछी
एक दूसरे के साथ भी और पास भी
एक दूसरे के इर्द गिर्द मंडराते हुए
तो आवाज आती है मुझ तक
कि हम साथ है
जब देखती हूं हंसीन फूलों के जोड़े को
एक दूसरे से लिपटे , एक दूसरे के रंग में सराबोर
तो एक आवाज आती है मुझ तक
कि हम साथ है
जब सांझ होती है और सूरज चांद का वो थोड़ा सा साथ
जब देखती हूं खुले गगन में
बहुत देर तक तो वो साथ नहीं होता
फासले भी दिखते नहीं
पर साथ ना हो कर भी एक दूसरे के एहसास को समेट लेते है अपनी रौशनी में
तो एक आवाज आती है मुझ तक
कि हम साथ है
जब भागती हुई नदी को समंदर में एकतार समाते हुए देखती हूं
बिना रुके बिना थके और बिना किसी शिकायत के उतरती है नदी अपने समंदर में
तो एक आवाज आती है मुझ तक
कि हम साथ है
पहाड़ों पर अटके हुए बादल
कुछ देर रुक कर
ऊंचे पहाड़ों को गले लगाया है
उसे अपने प्यार से भिगोता है और खुद गुम हो जाता है
उसके पाने खोने को देख कर
तो एक आवाज आती है मुझ तक
कि हम साथ है
हम साथ है प्रकृति के हर रंग हर रूप हर आकार में
हर स्वाद हर विस्तार में
हर जीत , छुपी हुई कई हार में
कभी बारिश में ,गर्मी में कभी और कभी बूंदों की बौछार में
समंदर की गहराई में , पहाड़ों की मजबूत दीवार में
हर जगह से सुनाई देता है मुझे एक ही सच
कि हम साथ है
कि हम साथ है……

~ डॉ. श्वेता पाण्डेय

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