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मां शरण में, आ गई मैं …… दीप बन जलती रहूंगी …….

आराधना

मां शरण में आ गई मैं

दीप बन जलती रहूंगी

ज्ञान दो संगीत भर दो

शारदे विनती करूंगी …

मां शरण में आ गई मैं दीप बन जलती रहूंगी

हो कृपा तेरी अगर तो

मूक को संगीत दे दे

स्वर जो वीणा से बंधे हैं

मुक्त कर दे गीत दे दे

मैं तुम्हारी वंदना मे गीत ये गाती रहूंगी

मां शरण में आ गई मैं दीप बन जलती रहूंगी

दिव्य पद्मासन विराजे

श्वेत पट में मातु साजे

हैं नयन पावन तुम्हारे

पापियों को भी जो तारे

सृष्टि के सब कष्ट हर लो याचना तुमसे करूंगी

मां शरण में आ गई मैं दीप बन जलती रहूंगी

भोर की लाली के जैसा

है तेरा अधिगम निराला

ले शरण अपनी मुझे भी

ज्ञान की तू बांट हाला

इस कलम से प्रेम बिखरे प्रेम ही लिखती रहूंगी

मां शरण में आ गई मैं दीप बन जलती रहूंगी

~ मनीषा जोशी मणि

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