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मातृत्व स्त्री सौंदर्य को द्विगुणित करता है, आयातित सौंदर्य बोध से प्रभावित स्त्रियों को ……..

मातृत्व स्त्री सौंदर्य को द्विगुणित करता है।
आयातित सौंदर्य बोध से प्रभावित स्त्रियों को
पुनर्नवा का ज्ञान होना आवश्यक है।
चिर यौवन और सौंदर्यबोध की गारंटी दुनिया में कोई नहीं दे सकता किन्तु
हमारा आयुर्वेद इसकी गारण्टी देता है।
नैसर्गिक रूप से ही
हृदय भाग में अमृत छत्र है।
वक्ष वात्सल्य सौंदर्यबोध कितना सुन्दर स्वरूप है।
हृदय में ही तो ईश्वर कमल है।
जैसे फूलों में सुगंध वैसे शैवागम में स्पंद!
जैसे रेडियम की रश्मियाँ….
‘आपोज्योतिरसोऽमृतम्’
स्थूल से सूक्ष्म> सूक्ष्मतर >सूक्ष्मतम
पदार्थिक ज्ञान-विज्ञान के क्रम हैं।
भाव और रस एक साथ हैं।
मातृत्व शुद्धतम भाव है
जो सर्वाधिक सशक्त भी है।
मातृत्व भाव के साथ रस लयात्मकता में आबद्ध है।
सांगीतिक ध्वनि में रस है।
रश्मियों में, तेज में रस है।
वही रस रूप में है।
रस व्यापक शब्द है।
अपनी वैज्ञानिक शब्दावलियों को समझ लिया तो
भारतीय ज्ञान परंपरा के सूत्रों में निहित अद्भुत लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
इससे ही अन्य ज्ञान सरणियों में प्रवेश मिल जाएगा।
यथा-
साहित्य से आयुर्वेद के रसायन में।
हमारे आचार्यों ने विभिन्न ज्ञान सरणियों में एक समान शब्दावली रखा है।
इसका लाभ यह है कि
विविध ज्ञानों का केन्द्रीय विज्ञान समझते ही
सरलता से अन्य विषयों में प्रवेश मिल जाता है।
यह भारतीय ज्ञान-विज्ञान की परंपरा की विशिष्टता है।
ऐसा मेरा मानना है।
शक्ति संगम तंत्र के तारा खण्ड में शिव जी कहते है-
नारी त्रैलोक्य जननी, नारी त्रैलोक्य रूपिणी
नारी त्रिभुवन धारा, नारी देह स्वरुपिणी॥
‘नारी त्रैलोक्य की माता है।
यह मातृत्व ही तो है जो नारी को सृष्टि का प्रत्यक्ष विग्रह रूप बनाता है।
नारी ही त्रिभुवन का आधार और वही शक्ति की देह है।
आज हम नारीवाद की जिस अवधारणा को सुनते हैं
वह नारी स्वास्थ्य की अवधारणा को तो रंच मात्र भी नहीं समझता।
स्वास्थ्य यानी, स्व में स्थिति।
अर्थात्‌ अपने मूल प्रकृति में स्थिर होना।
जब मूल प्रकृति में यदि कोई गडबड़ी है तो उसके उपचार की आवश्यकता होती है।
भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का उद्देश्य व्यक्ति को उसकी मूल प्रकृति में स्थिर रखना है।
यह मनःकायिक से भी आगे चित्त को स्थिर रखने की विधियों की बात करता है।
भारतीय घरों में स्वास्थ्य की कुंजी स्त्रियों के पास होती रही है। स्त्रियों का यह ज्ञान जो उन्हें स्वस्थ, सबल बनाए रखता था क्या यह नारी सशक्तिकरण नहीं था?

~ डॉ अभिलाषा द्विवेदी
नई दिल्ली

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