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सब कुछ हमारे हिसाब से हो, ये सम्भव नहीं ……..

ब कुछ हमारे हिसाब से हो, ये सम्भव नहीं, सब लोग हमसे प्रसन्न हों ये भी सम्भव नहीं, लेकिन फिर भी हम इनसे दुखी रहते हैं, स्वयं से बस यही प्रश्न करते रहते हैं ऐसा क्यों हुआ?मेरे साथ ही क्यों हुआ??कुछ परिस्थितियाँ कुछ लोग हमें जीवन के सबसे असहनीय दुःख दे जाते हैं जिन पर हमारा कोई वश नहीं होता, हम उन परिस्थितियों से लड़ नहीं सकते, हम उन लोगों से प्रतिशोध नहीं ले सकते.. बस स्वयं को दुखी करने के अतिरिक्त और कोई माध्यम शेष बचता नहीं। लेकिन विचार कीजिये क्या ये उचित है?ये जीवन बहुत अनमोल है इसका सीधा संबंध ईश्वर से है उस परमपिता की सबसे अनमोल कृति मानव, जिसे ईश्वर से सोचने,समझने और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान की है। तो फिर क्यों न सही निर्णय लिए जाएँ जो हमारे और हमारे जीवन के लिए बेहतर हों, हम जीवनभर इसलिए दुखी रहते हैं क्योंकि हमने अपने सुख और दुःख की डोर दूसरों को पकड़ा रखी है, वो जब चाहें उस डोर को खींच कर आपको पीड़ा दे सकते हैं या प्रसन्नता के लिए डोर को ढीला छोड़ सकते हैं।क्या ये विवशता आपको स्वीकार है?विचारणीय है जब हम अपना अच्छा और बुरा दोनों समझने हेतु क्षमतावान हैं तब परिस्थितियों के सामने डटकर खड़े होने का जज़्बा क्यों नहीं?एक बात सदैव याद रखिये, जिस परिस्थिति या संबंध या व्यक्ति को आप बदल सकते हैं

उसे निश्चित रूप से बदल दीजिये, और जो आप बदल नहीं सकते उसे स्वीकार कीजिये और कोई माध्यम नहीं, और जिसे बदला नहीं जा सकता है और न ही स्वीकार किया जा सकता है, उसे जीवन से निकाल फेंकिये….क्योंकि सार ये है की आपका प्रसन्न रहना सबसे अधिक आवश्यक है।इतना साहस तो रखिये की जब भी जीवन में कोई विषम परिस्थिति आए तो आपके चेहरे की अडिग मुस्कान देखकर थोड़ा तो घबराये।मुश्किलें आसान हो जाती हैं जब हमें स्वयं पर विश्वास होता है, नकारात्मक लोग हमारी सकारात्मक ऊर्जा देखकर स्वयं हमसे दूर हो जाते हैं यही प्रकृति का नियम है।डरे हुए को और अधिक डराया जाता है…सब कुछ हमारे हाथ में है एक बार प्रयास तो कीजिये, अपने सुख और दुःख के कारण और कारक केवल और केवल आप हैं।दूसरों की बातों से और समय की मार से घबराइए मत! डट कर सामना कीजिये,या तो बदलिए या स्वीकार कर लीजिये या त्याग दीजिये लेकिन प्रसन्न रहिये।

~ प्राची मिश्रा

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